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जानिये ईस्टर आइसलैंड का रहस्य।

वैसे तो संसार में कई आइसलैंड हैं लेकिन ईस्टर आइसलैंड इन सभी आइसलैंडों में सबसे अलग तथा सबसे रहस्यमई है। यह दक्षिण पूर्व प्रशांत महासागर में स्थित है। जो वर्तमान में चिली का हिस्सा है।  ईस्टर आइसलैंड रहस्य की  एक ऐसी अनसुलझी पहेली है जिसे आज तक सुलझाया नहीं जा सका। दोस्तों आज हम जानेंगे ईस्टर आइसलैंड के बारे में जिसका रहस्य उसकी खोज के साथ ही प्रारंभ हो गया था। क्या है ईस्टर आईसलैंड का रहस्य ईस्टर आइसलैंड में हजारों ऐसी बड़ी-बड़ी 15 से 20 फुट ऊंची तथा 70-80 टन वजनी मूर्तियां पाई गई जिन्हें देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। कुछ मूर्तियों तो ऊंचाई में 30 से 32 फुट तथा 80 से 90 टन वजनी थी। वैज्ञानिकों पुरातत्वविदों के अनुसार यह मूर्तियां आज से 1200 साल पहले बनाई गई थीं। अब सवाल आता है कि आखिर इन मूर्तियों को बनाया किसने था, जबकि वहां पर किसी सभ्यता के होने के प्रमाण ही नहीं मिलते और यदि इन्हें इस देश के निवासियों ने बनाया था तो सवाल यह उठता है कि, आज से हजारों साल पहले मानव सभ्यता इतनी विकसित ही नहीं हुई थी कि इतने बड़े तथा वजनी पत्थरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा सके

स्वामी विवेकानंद जी के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।

"स्वामी विवेकनंद जी" का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी जी एक महान आध्यात्मिक गुरु तथा विचारक थे।ये युवाओं के प्रेरणा स्रोत थें। इन्ही के जन्मदिवस के सुअवसर पर " राष्ट्रीय युवा दिवस " मनाया जाता है। स्वामी जी द्वारा अमेरि का के शिकागो में दिया गया भाषण काफी प्रसिद्ध है। आप सनातन धर्म के कुशल प्रणेता थे। उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये। ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं, वह हम ही हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं, और फिर रोते हैं कि कितना अंधेरा है।   हम वह हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोच रहे हैं। जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते। पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध किया जाता है, और फिर उसे स्वीकार भी कर लिया जाता है। दिल और दिमाग के टकराव में हमेशा दिल की सुनो। शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो भी तुम्हें द

क्या है "अटलांटिस द्वीप" का रहस्य।

क्या वाकई में आज से 3500 साल पहले अटलांटिक महासागर में जिब्राल्टेर जलडमरू -मध्य के आस पास एक ऐसा द्वीप था जो यूरोप और एशिया महाद्वीप के योग से भी ज्यादा बड़ा था। आज हम जानेंगे सबसे रहस्यमई "अटलांटिस द्वीप" के बारे में जिसका रहस्य आज तक किसी ने नहीं सुलझा पाया है। क्या है "अटलांटिस द्वीप" का रहस्य प्लेटो के अनुसार आज से 3500 साल पहले अटलांटिक महासागर में एक द्वीप हुआ करता था जिसे लोग अटलांटिस के नाम से जानते थे। अटलांटिस द्वीप के लोग काफी उन्नत थे। काफी अच्छी मंदिरें, बंदरगाह, अच्छी-अच्छी धातुएं, सोने के रथ पर सवार देवता आदि चीजें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि अटलांटिस वाकई एक अद्भुत द्वीप था। लेकिन अटलांटिसवासियों की इन खुशियों के बीच आया एक ऐसा दिन जिसने सारी अटलांटिस द्वीप की कहानी ही खत्म कर दी। आखिर क्या हुआ था "अटलांटिस द्वीप" के साथ। एक शाम अटलांटिस के चारों ओर का समुद्र लाल होने लगा जोर- जोर की आवाजें आने लगी धरती हिलने लगी। सभी अटलांटिस-वासी काफी डर गए, और कुछ ही समय बाद आकाश से जलते हुए पत्थरों की वर्षा होने लगी, चारों तरफ

क्या है बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी।

बायोमैट्रिक्स तकनीक एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। जैसे फिंगरप्रिंट का उपयोग करके, आंखों की रेटिना को स्कैन करके या आंखों की "आयरिश" को स्कैन करके। बात करते हैं आज से कुछ साल पहले की जब किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके हस्ताक्षर से की जाती थी। लेकिन समय के साथ हस्ताक्षर कम प्रभावी होने लगा क्योंकि एक ही व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की तरह हस्ताक्षर कर खुद को सही प्रमाणित करने लगता। जिससे समय के साथ विकास हुआ "बायोमेट्रिक तकनीक" का। आज हम यह तकनीक हमारे जीवन के प्रत्येक हिस्सों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आपने तो आधार कार्ड जरूर ही बनवाया होगा। आधार कार्ड बनवाते समय बायोमेट्रिक तकनीक का ही उपयोग होता है, जिसमें आपकी उंगलियों का फिंगरप्रिंट स्कैन किया जाता है जो भविष्य में आपकी पहचान के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। बायोमेट्रिक तकनीकी कैसे काम करती है जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे शरीर के कुछ ऐसे अंग या हमारे कुछ ऐसे व्यवहार हैं, जो हमें अन्य सभी लोगों से पूर्णतः अलग करते हैं। जैसे:- हमारे हाथों की उंगलियों के फिंग

आंखों से हम कैसे देख पाते हैं।

 आंख से हम कैसे देख पाते  हैं।  कभी न कभी प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में यह सवाल जरूर आता है कि आखिर हमारी आंखें कैसे हमे ये दुनिया दिखाती हैं।  हमारी आंखों को देखने में लिए किन-किन प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है।  हम जाने की हमारी आंखें कैसे काम करती हैं, इससे पहले हमे जानना होगा हमारी आखों की आंतरिक संरचना में बारे में। आखों की संरचना  जैसा की हम सब जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य में दो ही आंखें होती हैं। हमरे आखों की संरचना एक गोले के समान होती है, जिसे नेत्रगोलक कहा जाता है। नेत्रागोलक का व्यास 25 मिलीमीटर जितना होता है। नेत्रगोलक का बाहरी हिस्सा एक पतली पारभाषी परत से मिलकर बना होता है, जो " कंजक्टाइवा" के नाम से जाना जाता है। कंजक्टाइवा के अंदर एक और परत पाई जाती है जिसे हम " इस्कलेरा " के नाम से जानते हैं।   चलिए अब बात करते हैं आंखों की आंतरिक संरचना की। हमारी आंखों के अंदर कॉर्निया, परितारिका, पुतली, नेत्रोद, अभिनेत्र लेंस, तथा रेटिना पाए जाते हैं। कार्निया एक परदर्शक तथा अत्यंत पतली झिल्ली जैसी संरचना होती है। नेत्र के अग्र भा

क्या आपको पता है बिजली के इतिहास का सबसे रोचक वैज्ञानिक प्रयोग।

क्या आपको पता है इतिहास का सबसे रोचक वैज्ञानिक प्रयोग  आज बिजली का उपयोग हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हो रहा है। बिजली आज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। बिजली की इसी उपयोगिता के कारण आज कई देश इस के ज्यादा से ज्यादा उत्पादन का भरसक प्रयास कर रहे हैं। हमने बिजली की उपयोगिता के बारे में जाना। अब हम जानेंगे इसके इतिहास की एक ऐसी घटना जो आप को रोमांचित कर देगी। बात की जाए बिजली की इतिहास की तो बिजली का आविष्कार किसी एक वैज्ञानिक ने व्यक्तिगत रूप से नहीं किया, बल्कि कई वैज्ञानिकों के सार्थक प्रयोगों द्वारा आज हम बिजली का आविष्कार करने में सक्षम हो सकें। यह वैज्ञानिक है निकोला टेस्ला, बोल्टा, गैल्वेनी, मैक्सवेल इत्यादि। गैल्वेनी जो कि इटालियन विद्वान थे, उनके ज्ञान की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी। उनके पास बिजली उत्पादक मशीन थी। जिसके द्वारा विद्यार्थियों को दिखाया करते थे कि आखिर बिजली क्या है। इसके लिए वे एक कांच के ऊपर रेशम के कपड़े को रगड़ते थे और रगड़ने के बाद वह इस पर एक लट्टू को रखते थे। जैसे ही वे लट्टू को कांच पर रखते वैसे ही उससे चिंगारियां निकलने लगती।

क्यों आरस्तु को उनके घर से निकाला गया था।

क्यों आरस्तु को उनके घर से निकाला गया था  आज आरस्तु का नाम  कौन नही जानता। आरस्तु एक यूनानी  दार्शनिक थे। आरस्तु विश्वविजेता सिकंदर महान   के गुरु तथा प्लेटो के शिष्य थे। अरस्तु एक महान भौतिक शास्त्री, जीव विज्ञानी, कवि, नााटककार, राजनीति शास्त्री इत्यादि थे। आज हम आपको आरस्तु  के जीवन से जुडी एक महत्वपूर्ण और दुखद घटना के बारे में बातएंगे। आखिर क्यों आरस्तु को उनके गृह नगर से निकाल दिया गया था। क्यों आरस्तु को बेघर कर दिया गया था प्राचीन काल में  धार्मिक तथा वैज्ञानिक प्रवृतियों में बहुत विरोधाभास था। इसी वीरोधाभास के कारण अरस्तु को बेघर होना पड़ा था। "देवता ज्यूस" यूनानियों के सबसे महान देवता थे। यूनानी मानते थे की "देवता ज्यूस" ने ही इस दुनिया का निर्माण किया है। यूनानी  हीलियस  को सूर्य का देवता मानते थे। उनकी मान्यता थी कि हीलियस अपने "प्रकाशवान घोड़ों" के सजे हुए रथ से सुबह पृथ्वी के नीचे से निकलते हैं और शाम होते ही वे अपने घोड़ों को आराम देने के लिए पृथ्वी के नीचे चले जाते हैं। (यूनानी इसी रथ को सूर्य मानते थे ) यूनानी कथाओं के