बायोमेट्रिक तकनीकी कैसे काम करती है
जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे शरीर के कुछ ऐसे अंग या हमारे कुछ ऐसे व्यवहार हैं, जो हमें अन्य सभी लोगों से पूर्णतः अलग करते हैं। जैसे:- हमारे हाथों की उंगलियों के फिंगरप्रिंट, आंखों की रेटिना तथा आयरिश अथवा हमारी आवाज, चाल-ढाल इत्यादि अन्य व्यक्तियों से पूर्णता अलग होती हैं। इन्ही डेटा को हम अपने कंप्यूटर में प्रविष्ट कराते हैं, तत्पश्चात जब हम किसी व्यक्ति की पहचान करते हैं तो उसके बायोमैट्रिक डेटा को मैच कराते हैं। यदि पहले से प्रविष्टि डेटा और लिया गया डेटा दोनों मैच करते हैं, इसका मतलब है कि वह व्यक्ति सही है और यदि लिया गया डेटा और कंप्यूटर में सुरक्षित डेटा मैच नहीं कर रहा इसका मतलब है कि व्यक्ति गलत है।
बायोमेट्रिक पहचान मुख्यतः तीन भागों में बटी हुई होती है।
पहला चरण होता है जब किसी व्यक्ति का नामांकन किया जाता है। तो पहले उसके सभी डेटाबेस जैसे आंख की रेटिना, हाथ की उंगलियों के फिंगर प्रिं आदि को स्कैन कर एक "बायोमेट्रिक टेंप्लेट" बनाया जाता है।
इसके बाद "बायोमेट्रिक टेंपलेट" को "डेटाबेस माड्युलस" में संग्रहित किया जाता है। डेटाबेस माड्यूलस में संग्रहण दूसरा चरण होता है।
तीसरा चरण होता है, "मैचर मॉड्यूलस" इसमें किसी व्यक्ति के पहले से बने हुए बायोमेट्रिक टेंपलेट से वर्तमान डेटाबेस द्वारा बने हुए बायोमेट्रिक टेंप्लेट से मैचिंग की जाती है। यदि मैचिंग सही तरीके से हो रही है इसका मतलब है व्यक्ति सही है अथवा यदि मैचिंग सही नहीं हो रही है, इसका मतलब है कि वह व्यक्ति गलत है
चलिए जानते हैं कुछ बायोमैट्रिक नमूनों के बारे में
हाथ की हथेली
हाथ की हथेली का उपयोग बायोमेट्रिक नमूनों के तौर पर किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के हाथ के हथेलियों की बनावट अलग-अलग होता है। उंगलियों की लंबाई वक्रता आदि के आधार पर हम बायोमेट्रिक नमूनों की पहचान करते हैं। भूतकाल में यह पहचान का सबसे अच्छा साधन था लेकिन कुछ दोष युक्त होने के कारण आज इसका उपयोग बहुत कम होता है
हस्ताक्षर
हम सभी की पहचान करने के लिए आज हम अक्सर ही हस्ताक्षर का प्रयोग करते हैं। यह भी कुछ दोष युक्त है इसलिए बैंकिंग इत्यादि क्षेत्रों में इसका उपयोग थोड़ा कम हुआ है।
अंगुल छाप या फिंगरप्रिंट
आज फिंगरप्रिंट या अंगुल छाप का उपयोग पूरी दुनिया में बायोमेट्रिक नमूने के तौर पर किया जाता है। पृथ्वी पर उपस्थित सभी व्यक्तियों के उंगलियों का पैटर्न अलग अलग होता है। यह सामान्यतःसभी व्यक्तियों की उंगलियों में अलग-अलग उभारों के कारण होता है। यह बात ध्यान रखना अति आवश्यक है कि इन पेटर्नों को कभी भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यहां तक कि दो जुड़वा भाइयों के पैटर्न भी अलग-अलग होती हैं।
अंगुल छाप से किसी व्यक्ति के पहचान के लिए सर्वप्रथम उसकी उंगलियों को स्कैन किया जाता है फिर उसके बाद प्राप्त डाटा के आधार पर बायोमेट्रिक टेंपलेट तैयार किए जाते हैं और पहले से उपस्थित टेंपलेट से मैच कराया जाता है इसके बाद ही सही व्यक्ति की पहचान हो पाती है।
आंखों की रेटिना
प्रत्येक व्यक्ति की आंखों की रेटिना का पैटर्न अलग अलग होता है। यही कारण है कि आज रेटिना का उपयोग बायोमेट्रिक अभिलक्षणों की पहचान करने के लिए किया जाता है। वर्तमान में इसका उपयोग थोड़ा कम किया जा रहा है क्योंकि यह तकनीकी काफी महंगी और उपयोग में जटिल भी है।
आंखों की आईरिस
हमारी आंखों की आइरिस से, जो की पुतली के आकार को नियंत्रित करने का कार्य करती है का पैटर्न सभी व्यक्तियों में अलग अलग होता है आंख की आयरिश का पैटर्न कभी भी बदल नहीं सकता। यहां तक कि चाहे ऑपरेशन भी क्यों ना कर दिया जाए लेकिन आयरिश का पैटर्न कभी नहीं बदलता। आयरिश स्कैनिंग काफी शुद्ध तकनीकी होती है इसमें गलती की गुंजाइश बहुत ही कम होती है
लेकिन इस तकनीकी का उपयोग महत्वपूर्ण स्थानों में ही होता है क्योंकि इसके लिए उच्च रेजोल्यूशन कैमरों की आवश्यकता होती है। इसलिए इसका उपयोग थोड़ा कम ही हो पाता है।
बायोमेट्रिक तकनीकी के कुछ खतरे।
इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि इसमें कभी-कभी सही उपभोक्ता को भी अस्वीकार कर दिया जाता है और कभी कभी गलत व्यक्ति को भी सही बता दिया जाता है। यह सब तकनीकी में कुछ खराबी के कारण होता है।दोस्तों कैसा लगा आपको हमारा यह लेख एक बार कमेंट मैं जरूर बताएं और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
धन्यवाद!
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