Skip to main content

क्या मांसाहार सही हैं।


जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा हमें भोजन द्वारा प्राप्त होती है। हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन जितना जरूरी होता है उससे के साथ-साथ फल भी अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। हम सभी फल से होने वाले फायदों से तो भली प्रकार परिचित ही होंगे। फल हमें और भी ज्यादा ऊर्जावान और तंदुरुस्त बनाते हैं चलिए आज हम जानेंगे विभिन्न विद्वानों के फल के विषय में कुछ महत्वपूर्ण कथन जो आपको फल खाने के लिए अवश्य प्रेरित करेंगे।
क्या मांसाहार सही हैं।


महात्मा गांधी के अनुसार:-
"वनस्पतिक भोजन मनुष्य के लिए उत्तम है, परंतु फलों के पश्चात। वनस्पतिक पदार्थों के साथ-साथ प्रत्येक प्रकार की साग सब्जी और दूध की भी यही अवस्था है। वनस्पतिक पदार्थों में मनुष्य को पालन करने का वह गुण नहीं है जो फलों में है, इसलिए की वानस्पति पदार्थ बिना पकाए हम खा नहीं सकते और पकाने से उनका प्राकृतिक गुण और लाभ मर जाता है।"

डॉक्टर अनाकिंग्स कोर्ड ने लिखा है:-
"मुझे ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं जो मनुष्य के मांसाहारी होने पर विवाद करते हैं। वह मनुष्य के दांत और अमाशय की बनावट के आधार पर यह कहते हैं कि मांसाहार स्वाभाविक है। लेकिन यदि ऐसा है तो क्या बंदर को मांसाहारी नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनके लंबे और नुकीले दांत तो उसके मांसाहारी होने का और अधिक प्रमाण रखते हैं, परंतु ऐसा नहीं है। किसी ने आज तक किसी बंदर को मांस खाते हुए नहीं देखा होगा।"

मोसियपापिट का फलों के संबंध में विचार:-
"मनुष्य के दांत और उसके अमाशय की बनावट उसके फलाहारी जीवन होने को प्रकट करती है। ऐसे में वह फलों को छोड़कर अन्य भोजन लेता है, जिससे उन्हें पचाने और उन में उपस्थित तत्वों का लाभ लेने में असमर्थ हो जाता है।"

प्रोफेसर अज़ोन कहते हैं:-
"मनुष्य के शरीर की बनावट जिन जीवों से मेल खाती है वह सब फलों का सेवन करते हैं। हमारे अनुभव बताता है कि फलों को खा कर व्यक्ति जितना तंदुरुस्त, ऊर्जावान और उत्तम विचारों से पूर्ण रहता है उतना वह अन्य किसी प्रकार के भोजन से नहीं रह सकता।"

डॉक्टर फ्लोरेल्ज के अनुसार:-
"मनुष्य ना तो मांसाहारी है और ना वनस्पतिहारी। उसके अमाशय की बनावट मांसाहारी जीवो से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती। यदि मनुष्य के आमाशय की बनावट पर भली-भांति विचार किए जाए तो मालूम हो जाएगा कि वह बंदरों की भांति फलाहारी और शाकाहारी है।"

प्रोफ़ेसर चार्ल्स वेल्स के अनुसार:-
"जिनको शरीर विज्ञान की जानकारी है, उन्हें यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि मनुष्य फलाहारी है मनुष्य के दांत और अमाशय खुद इसका प्रमाण देते हैं।"

प्रोफेसर जॉन वुड के अनुसार :- 
"मनुष्य के लिए मांस का भोजन उसकी प्रकृति नहीं है इसका वास्तविक आधार फल और साक है।"

फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान पियर गेसेडी लिखते हैं:-
"मैंने मनुष्य जीवन का जहां तक अध्ययन किया है और जहां तक उस पर विचार किया है। इस आधार पर मैं गर्व से कह सकता हूं कि मनुष्य फलाहारी है। जो लोग इसे मांसाहारी बताते हैं वह बहुत बड़ी भूल करते हैं तथा अपने शरीर और जीवन को नष्ट करते हैं।"

जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान साफ व्हूसन कहते हैं:-
"मनुष्य मांस का स्वभाव से ही विरोधी है। और यह बात इससे स्पष्ट है कि उसका आमाशय बंदरों और वनमानुष से मेल खाता है। यह दोनों जीव फल और शाग खाते हैं। जिससे मनुष्य का भी यही कर्तव्य है कि वह भी फल और साग का ही सेवन करें।"

क्या मांसाहार सही हैं।

इन कथनों से स्पष्ट होता है कि मनुष्य को वास्तव में एक फलाहारी और शाकाहारी जीव होना चाहिए। लेकिन आज कई लोगों में मांसाहार का सेवन कर मानवता को कलंकित किया है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि मनुष्य के शरीर के लिए आवश्यक सभी तत्त्व फलों से बहुत ही आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं। कई वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य को भोजन पकाने की कोई भी आवश्यकता नहीं है इससे भोजन के आवश्यक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

दोस्तों आज आप ने जाना कि वास्तव में मनुष्य प्रकृति प्रदत फल खाने के योग्य बना है। पर आज हम प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर मांसाहारी बन रहे हैं जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ है।
कैसा लगा आपको हमारा यह है लेक एक बार कमेंट करके जरूर बताएं।

धन्यवाद!

Comments

Popular posts from this blog

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।  अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में हुआ था। उनके पिता का नाम हरमन आइंस्टीन  तथा माता का नाम पोलिन कोच था। अल्बर्ट आइंस्टीन एक महान वैज्ञानिक थे। उन्हें वर्ष 1921 का नोबल पुरस्कार भी दिया गया था। उनका सापेक्षता का सिद्धांत आज पूरी दुनिआ में प्रसिद्ध है। दुनिया उन्हें जीनियस के नाम से भी जानती हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने भौतिकी के नियमों से सारी दुनिया में ख्याति प्राप्त की थी। Albert Einstein anmol vichar अल्बर्ट आइंस्टीन के प्रसिद्ध अनमोल विचार यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिल्कुल नई सोच की आवश्यकता होगी। सफल व्यक्ति बनने का प्रयास मत करें बल्कि सिद्धांतों वाला व्यक्ति बनने का प्रयत्न करें। हर कोई जीनियस है, लेकिन यदि आप मछली को उसके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से आंकेंगे तो वह अपना सारा जीवन यह समझकर बिता देगी कि वह मूर्ख है। जिंदगी साइकिल चलाने की तरह है, आपको बैलेंस बनाए रखने के लिए चलते ही रहना होगा। कोई भी समस्या चेतना के उस स्तर पर रहकर नहीं हल की जा सकती है, जिस पर वह

क्या है इन चिकित्सा पद्धितियों का रहस्य।

हमारे देश में आज भी रोग हो जाने पर झाड़-फूंक का सहारा लिया जाता है। और ज्यादातर लोग इससे ठीक भी हो जाते है। यह वाकई रहस्यमई है। पाठकों आज हम इस तरह की एक रहस्यमई चिकित्सा पद्धति का विश्लेषण करेंगे । पहली है हाथों के स्पर्श से बीमारियों को ठीक करना तथा दूसरी बायोफीडबैक सिस्टम। आज इन दोनों पद्धतियों से करोड़ों लोगों के रोग दूर किए जा चुके हैं। यह दोनों पद्धतियां झाड़-फूंक से भी कहीं ज्यादा रहस्यमई हैं। यदि इन्हें चिकित्सा पद्धतियों का भेद जाने दिया गया तब आयुर्विज्ञान अपने सातवें आसमान में होगा और चिकित्सा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व क्रांति देखने में आएगी। 1971 में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में नर्सिंग की महिला प्रोफेस र  डॉ डोलोरस क्रीगर ने पूर्वी देशों की यात्रा की और विभिन्न प्रकार के धर्मों का अध्ययन किया। और पाया कि हिंदू धर्म में जिसे "प्राण" कहां गया है वह मानव रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कणिकाओं से काफी ज्यादा समानता रखता है। हिंदू धर्म में बताया गया है कि प्राण मानव के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि ऑक्सीजन का एक अणु। उसी समय जुस्ता स्मिथ जो कि अम

आकाश नीला क्यों दिखाई देता है। Aakash nila kyon dikhai deta hi.

हमे आकाश नीला क्यों दिखता है? क्या आपने भी कभी सोचा है कि आखिर ये आकाश हमें  नीला(blue) क्यों दिखता है। यदि हां तो मैं आपको बताऊंगा की आखिर ऐसा क्यों होता है। Sky blue आकाश नीला दिखने का कारण- दोस्तों जैसा की आपको पता ही होगा कि प्रकाश 7 (seven) रंगों से मिलकर बना होता है जो हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। उसी प्रकार सूर्य से निकलने वाला प्रकाश भी 7 रंगों से मिलकर बना होता है। Sky blue अब बात आती है प्रकाश के व्यवहार की तो प्रकाश कई तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है जैसे- परावर्तन(reflection), अपवर्तन(refraction), विवर्तन (diffraction) तथा प्रकीर्णन( dispertion) आदि। चलिए अब जानते हैं कि आखिर प्रकीर्णन है क्या? दोस्तो प्रकीर्णन प्रकाश का एक महत्वूर्ण गुण है, आइए प्रकीर्णन को परिभाषित करते हैं। "प्रकाश का अत्यंत सूक्ष्म कणों से टकराकर बिखर जाना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है"। दोस्तों अब हमने प्रकाश के प्रकीर्णन को समझ ही लिया है तो अब हम बात कर लेते हैं, सूर्य प्रकाश में प्रकीर्णन की। सूर्य के प्रकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है।