Skip to main content

ऐसे आविष्कार जो आकस्मिक ही हो गएं थे।

हेलो दोस्तो 
जब हम बात करते हैं विद्युत बल्ब की तो हम इसके खोजकर्ता थामस अल्वा एडिसन के बारे में बात करने से बिल्कुल भी नहीं चूकते। थॉमस अल्वा एडिसन की विज्ञान के प्रति निष्ठा तथा लगन का परिणाम ही आज हम विद्युत बल्बों के रूप में देखते हैं। कहा जाता है कि उन्हें बल्ब का निर्माण करते समय हजारों बार असफलताओं का सामना करना पड़ा था। पर शायद असफलता सफलता पाने के लिए ही आती है। विज्ञान के इतिहास में विद्युत बल्ब की खोज एक महान खोज थी। इसी तरह मैं आज आपको कुछ ऐसी ही महान खोजों के बारे में बताऊंगा जो आकस्मिक रूप से की गई थीं। अर्थात वैज्ञानिक कुछ और बनाने का प्रयास कर रहें थे लेकिन उन्हें कुछ और महान चीज़ें मिलीं।

1- X-ray की खोज

वैसे तो आप सभी को पता ही होगा कि  की खोज विलियम रांट्जन ने की थी। पर शायद इसको इसका इतिहास न पता हो। एक्स-रे की खोज उन्हीं खोजों में शामिल है जो आकस्मिक रूप से की गईं थी। दरअसल जब विलियम रांट्जन अपनी प्रयोगशाला में काले गत्ते से ढकी विसर्जन नलिका पर कैथोड किरणों का अध्ययन कर रहे थे।
X-ray की खोज

उन्होंने विसर्जन नलिका को काले गत्ते से इसलिए ढक रखा था ताकि प्रकाश बाहर ना आ सके। उन्होंने विसर्जन नलिका के सामने प्लैटिनोसायनाइड लेपित पर्दा लगा रखा था। यह बात जान लेना महत्वपूर्ण है कि वह प्रयोग अंधेरे कमरे में ही कर रहे थे। प्रयोग के दौरान उन्होंने पाया की लैटिनोसाइनाइड लेपित पर्दा चमक रहा था। जबकि उन्होंने विसर्जन नलिका को पूरी तरह से ढक रखा था। यह देखकर वह वह काफी ज्यादा हैरान हुए उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है। एक बार उन्होंने उन किरणों के सामने अपना हाथ रखा जिससे यह किरणें उनके हाथों को पार कर उनकी हड्डियों का कंकाल पर्दे पर दिखा रहीं थी।
X-ray की खोज
x rays
उन्होंने कुछ दिन और रिसर्च कर यह सुनिश्चित किया कि यह एक नए प्रकार की किरणें हैं जो विसर्जन नलिका से आ रही हैं। और यह ज्यादातर चीजों को भेदने में भी सक्षम है नई प्रकार की किरणों को उन्होंने एक्स-किरणे नाम दिया जिसका अर्थ है अज्ञात किरणें। इसी खोज के लिए विलियम रंजन को वर्ष 1901 का भौतिकी का पहला नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। 

2-माइक्रोवेव ओवन का आविष्कार

आप सभी तो माइक्रोवेव ओवन से परिचित ही होंगे। इसने खाना बनाने की प्रक्रिया को और अधिक आसान कर दिया है। आज प्रायः यह ज्यादातर घरों में देखा जा सकता है। पर क्या आपको यह पता है कि माइक्रोवेव ओवन का आविष्कार भी आकस्मिक रूप से ही किया गया था। इसकी खोज के पीछे की कहानी काफी मजेदार है। बात है बीसवीं शताब्दी के बीच के दशकों की जब सभी संपन्न देशों के पास अच्छे खासे उच्च शक्ति माइक्रोवेव राडार सिस्टम हुआ करते थे। इन उच्च शक्ति माइक्रोवेव को उत्पन्न करने के लिए एक उपकरण की आवश्यकता होती थी। जिन्हे मैग्नेट्रॉन नाम से जाना जाता था। मैग्नेट्रॉन एक ऐसी युक्ति होती है जिसमें कांच की विसर्जन नलिका में कैथोड किरणों को चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में रखा जाता है जिससे माइक्रोवेव उत्पन्न होते हैं। मैग्नेट्रॉन नाम के इस युक्ति का निर्माण अमेरिका स्थित रेथान नामक कंपनी किया करती थी। इसी कंपनी में एक पर्सी स्पेंसर नामक इंजीनियर काम किया करते थे पर्सी स्पेंसर एक ऐसे इंजीनियर थे जिन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई खुद से ही की थी। एक बार उन्होंने महसूस किया कि जब वह माइक्रोवेव के संपर्क में होते तो उनकी चॉकलेट पिघलने लगती और जैसे ही वह उससे दूर हो जाते तब वह पिघलना बंद हो जाती। यह देखकर उन्होंने सोचा कि निश्चित ही माइक्रोवेव में चीजों को गर्म करने की अभूतपूर्व क्षमता होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने धातु के एक बक्से में मैग्नेट्रॉन की सहायता से उच्च चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया और पाया कि इससे खाद्य पदार्थ शीघ्र ही गर्म हो रहे थे। इस प्रकार पहला माइक्रोवेव ओवन अस्तित्व में आया।

3-कॉस्मिक विकिरणों की खोज।

आर्नो पेंजियास तथा रावर्ट विल्सन जो कि अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषक थे। वे वेल नामक प्रयोगशाला में कार्यरत थे सन् 1964 में वे एक अति सुग्राही संसूचक एंटीना से अति मंद माइक्रोवेव विकिरणों को कैप्चर कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने पाया कि 7 डिग्री केल्विन ताप पर एसी किरणें मिल रही थी जिन्हें किसी भी हालत में हटाया जाना संभव नहीं था। इससे बिग बैंग का सिद्धांत निश्चित ही काफी मजबूत हो गया।

कॉस्मिक विकिरणों की खोज।
kashmik kiran

4-पेसमेकर का आविष्कार।

पेसमेकर एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा ह्रदय रोगियों जिनके दिल की धड़कन सामान्य से ज्यादा या कम होती है के लिए उपयोग किया जाता है। जिससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन काल निःसंदेह बहुत ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। पेसमेकर के आविष्कार का इतिहास भी एक्सरे के इतिहास से काफी मिलता-जुलता है। इसका भी अविष्कार अनायास ही हो गया था। दरअसल 1960 में  विल्सन ग्रेट बेल नामक वैज्ञानिक को एक ऐसी युक्ति बनाने की सूझी जो ह्रदय की धड़कनों को अति अल्प समय में भाप सके। इसके लिए उन्होंने उक्त युक्ति का सृजन भी कर लिया। तत्पश्चात उन्होंने इसे शरीर के अंदर प्रत्यारोपित भी कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस का परिपथ पूरा करने के लिए गलती से एक मेगा ओम का प्रतिरोध ना लगाकर 1 किलो मेगा उम्र का प्रतिरोध लगा दिया। जिससे उस परिपथ द्वारा 1.8 मिलीलीटर प्रति सेकंड के स्पंद एक सेकंड में उत्पन हुए। जो कि सामान्य मानव हृदय की गति के बराबर होता है। इससे हृदय की गति को सामान्य किया जा सकता था। इस प्रकार की युक्ति को उन्होंने पेसमेकर नाम दिया उन्होंने इस पर कई संशोधन भी किए तथा इसमें आयोडीन की बैटरी लगाकर इसकी क्षमता कहीं ज्यादा बढ़ा दी थी।
पेसमेकर का आविष्कार।


दोस्तों जैसा कि आपने देखा कि कभी-कभी हमारी प्रकृति हमें कुछ महान खोज करने का अवसर देती है पर हम उन्हें अच्छी तरह से नहीं देख पाते तथा महान आविष्कारों को जन्म नहीं दे पातें।

दोस्तों कैसा लगा आपको हमारा यह लेख एक बार कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं जिससे कि हम आगे और भी अच्छे लेख लिखने के लिए प्रेरित हों।
धन्यवाद!

Comments

Popular posts from this blog

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।  अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में हुआ था। उनके पिता का नाम हरमन आइंस्टीन  तथा माता का नाम पोलिन कोच था। अल्बर्ट आइंस्टीन एक महान वैज्ञानिक थे। उन्हें वर्ष 1921 का नोबल पुरस्कार भी दिया गया था। उनका सापेक्षता का सिद्धांत आज पूरी दुनिआ में प्रसिद्ध है। दुनिया उन्हें जीनियस के नाम से भी जानती हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने भौतिकी के नियमों से सारी दुनिया में ख्याति प्राप्त की थी। Albert Einstein anmol vichar अल्बर्ट आइंस्टीन के प्रसिद्ध अनमोल विचार यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिल्कुल नई सोच की आवश्यकता होगी। सफल व्यक्ति बनने का प्रयास मत करें बल्कि सिद्धांतों वाला व्यक्ति बनने का प्रयत्न करें। हर कोई जीनियस है, लेकिन यदि आप मछली को उसके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से आंकेंगे तो वह अपना सारा जीवन यह समझकर बिता देगी कि वह मूर्ख है। जिंदगी साइकिल चलाने की तरह है, आपको बैलेंस बनाए रखने के लिए चलते ही रहना होगा। कोई भी समस्या चेतना के उस स्तर पर रहकर नहीं हल की जा सकती है, जिस पर वह

क्या है इन चिकित्सा पद्धितियों का रहस्य।

हमारे देश में आज भी रोग हो जाने पर झाड़-फूंक का सहारा लिया जाता है। और ज्यादातर लोग इससे ठीक भी हो जाते है। यह वाकई रहस्यमई है। पाठकों आज हम इस तरह की एक रहस्यमई चिकित्सा पद्धति का विश्लेषण करेंगे । पहली है हाथों के स्पर्श से बीमारियों को ठीक करना तथा दूसरी बायोफीडबैक सिस्टम। आज इन दोनों पद्धतियों से करोड़ों लोगों के रोग दूर किए जा चुके हैं। यह दोनों पद्धतियां झाड़-फूंक से भी कहीं ज्यादा रहस्यमई हैं। यदि इन्हें चिकित्सा पद्धतियों का भेद जाने दिया गया तब आयुर्विज्ञान अपने सातवें आसमान में होगा और चिकित्सा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व क्रांति देखने में आएगी। 1971 में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में नर्सिंग की महिला प्रोफेस र  डॉ डोलोरस क्रीगर ने पूर्वी देशों की यात्रा की और विभिन्न प्रकार के धर्मों का अध्ययन किया। और पाया कि हिंदू धर्म में जिसे "प्राण" कहां गया है वह मानव रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कणिकाओं से काफी ज्यादा समानता रखता है। हिंदू धर्म में बताया गया है कि प्राण मानव के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि ऑक्सीजन का एक अणु। उसी समय जुस्ता स्मिथ जो कि अम

आकाश नीला क्यों दिखाई देता है। Aakash nila kyon dikhai deta hi.

हमे आकाश नीला क्यों दिखता है? क्या आपने भी कभी सोचा है कि आखिर ये आकाश हमें  नीला(blue) क्यों दिखता है। यदि हां तो मैं आपको बताऊंगा की आखिर ऐसा क्यों होता है। Sky blue आकाश नीला दिखने का कारण- दोस्तों जैसा की आपको पता ही होगा कि प्रकाश 7 (seven) रंगों से मिलकर बना होता है जो हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। उसी प्रकार सूर्य से निकलने वाला प्रकाश भी 7 रंगों से मिलकर बना होता है। Sky blue अब बात आती है प्रकाश के व्यवहार की तो प्रकाश कई तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है जैसे- परावर्तन(reflection), अपवर्तन(refraction), विवर्तन (diffraction) तथा प्रकीर्णन( dispertion) आदि। चलिए अब जानते हैं कि आखिर प्रकीर्णन है क्या? दोस्तो प्रकीर्णन प्रकाश का एक महत्वूर्ण गुण है, आइए प्रकीर्णन को परिभाषित करते हैं। "प्रकाश का अत्यंत सूक्ष्म कणों से टकराकर बिखर जाना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है"। दोस्तों अब हमने प्रकाश के प्रकीर्णन को समझ ही लिया है तो अब हम बात कर लेते हैं, सूर्य प्रकाश में प्रकीर्णन की। सूर्य के प्रकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है।