श्री निवास रामानुजन की प्रेरणादायक जीवनी।
बात की जाए दुनिया के महान गणितज्ञों की तब हमारे जहन में रामानुजन का नाम ही सर्वप्रथम आता है। ये इतिहास के सबसे महान गणितज्ञों में से एक माने जाते हैं। इनकी गणित में प्रतिभा अद्वितीय थी, उन्होंने गणित में अपनी प्रतिभा से संपूर्ण विश्व को काफी ज्यादा प्रभावित किया और साथ ही भारत को गर्व करने का मौका भी दिया। श्रीनिवास रामानुजन का नाम आज भी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है। यह हमारे लिए किसी गौरव से कम नहीं है, हो भी क्यों ना इतने महान गणितज्ञ ने हमारे देश में जो जन्म लिया। रामानुजन जैसा गणितज्ञ आज भी इस संसार में दुर्लभ है। कहा जाता है कि वह सपने में भी गणित के सवालों को हल किया करते थे। उन्होंने बाल्यावस्था में ही गणित के क्षेत्र में महारत हासिल कर ली थी। उन्होंने 17 वर्ष की आयु में ही गणित में कई नवीन सिद्धांतों का उदय कर दिया था। जिनके संबंध में इतिहास के एक और महान गणितज्ञ प्रो. हार्डी लिखते हैं- "इतनी छोटी अवस्था में ही इतने महत्वपूर्ण और कठिन सिद्धांतों को सिद्ध करना काफी विस्मयकारी लगता है। उनके द्वारा सपनों में सवालों को हल करना हमें काफी ज्यादा आश्चर्यचकित करता है। जबकि इन्ही प्रश्नों को हल करने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों को भी कई वर्ष लग जाते थे".
रामानुजन का जन्म और बचपन।
रामानुजन का जन्म 27 दिसंबर 1887 में मद्रास के एक छोटे से ग्राम इरोद में हुआ था। उनकी माता का नाम कोमलताम्मल तथा पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर था। उनके पिता तथा पितामह मूल रूप से कुंभकोनम गांव के निवासी थे। रामानुजन का जन्म उनके नाना के यहां इरोद नामक गांव में हुआ था। उनका परिवार काफी निर्धन था। उनके पिता कपड़े के व्यापारी के यहां काम किया करते थे। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी। 5 वर्ष उपरांत उनको शिक्षा प्राप्ति के लिए स्कूल भेजा जाने लगा।
वे काफी कुशाग्र बुद्धि के थे। वे शिक्षक के पढ़ाते समय कई प्रकार के अटपटे सवाल पूछा करते थे, जैसे- यदि 2 को 2 से भाग किया जाता है, तो एक आता है तथा इसी प्रकार जब किसी भी संख्या का उसी संख्या से भाग दिया जाता है तब उत्तर एक ही आता है इसी प्रकार यदि 0 को 0 से भाग दिया जाए तो उत्तर क्या होगा। इस प्रकार के सवालों को सुनकर शिक्षक भी असमंजस में पड़ जाते थे। वे काफी शांत स्वभाव के थे। उन्होंने अपनी प्राइमरी की परीक्षा में जिले में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था, जिसके परिणामस्वरुप पुरस्कार के रूप में उनकी हाई स्कूल की पढ़ाई की फीस माफ कर दी गई थी।
बचपन में गणित प्रेम।
रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम अद्वितीय था। वे हमेशा गणित के ही संबंध में सोचते रहते थे। वह अपने शिक्षकों से कभी नक्षत्र के बारे में पूछते तो कभी पृथ्वी की बादल से दूरी के बारे में तो कभी पृथ्वी की परिधि के बारे में। इस प्रकार के गणित के सवालों को सुनकर शिक्षक गण काफी दुविधा में पड़ जाते और आश्चर्य के सिवाय कुछ भी ना कर पाते। कहा जाता है कि उन्होंने तीसरी कक्षा की ही पढ़ाई के दिनों में उन्होंने बीजगणित की सुप्रसिद्ध तीनों श्रेणियों का अध्ययन कर लिया था, जो कि इंटरमीडिएट कक्षाओं में पढ़ाई जाती थीं। चौथी कक्षा में त्रिकोणमिति का भी अभ्यास कर लिया था। इसी दौरान उन्होंने त्रिकोणमिति की एक पुस्तक B.A. के एक छात्र से मांगी। उसे यह काफी हास्यप्रद लगा और उसने रामानुजन को किताब देने से मना कर दिया। शायद रामानुजन की कर्तव्यशक्ति और प्रतिभा के बारे में उसे नहीं पता था। पर रामानुजन कहां हार मानने वाली थें। रामानुजन ने उससे कई बार आग्रह किया परिणामस्वरुप वह छात्र उन्हें मना ना कर सका और लोनी की सुप्रसिद्ध पुस्तक उन्हें दे दी। जब उस छात्र ने रामानुजन के प्रश्न हल करने की तेजी को देखा तो वह आश्चर्य से भर गया। जहां उसे पहले लग रहा था कि वह कोई सामान्य बालक है अब उसका यह भ्रम टूटने लगा। अब जबकि उसे रामानुजन की प्रतिभा और लगन का पता चल चुका था यदि उसे कोई भी गणित की समस्या होती तो वह रामानुजन से पूछने आ जाता। रामानुजन झटपट समस्या का समाधान कर देते।
कहा जाता है कि रामानुजन ने 12 वर्ष की आयु में समस्त त्रिकोणमिति हल कर ली थी। जब वह पांचवी कक्षा में थें तब उन्होंने ज्या और को कोज्या का भी विस्तार कर लिया था। इसमें सबसे खास बात यह है कि सबसे पहले ज्या और कोज्या का विस्तार आयलर नामक गणितज्ञ ने किया था, पर जब इसका विस्तार रामानुजन ने किया था तब उन्हें आयलर के विस्तार के बारे में तनिक भी जानकारी ना थी। वह हमेशा उच्च गणित की नई नई पुस्तकों की खोज करते रहते और जब उन्हें कोई नई पुस्तक मिलती वे उसे हल करने बैठ जाते। वे जिन भी नए-नए सिद्धांतों को प्रतिपादित करते वह किसी को बताने योग्य नहीं थे क्योंकि उतना उच्च कोटि का गणित ज्ञान शायद ही किसी को था। इससे वह कभी भी दुखी नहीं होते थे।जब वे हाई स्कूल में थें तो उनके एक मित्र ने उन्हें "कार" नामक गणितज्ञ की एक बुक लाकर दी थी। जिसमें गणित के 5000 फार्मूले दिए गए थे। यह पाकर रामानुजन काफी प्रसन्न हुए और वह दिन-रात इस किताब में लिखे हुए सूत्रों को हल करते रहते थें। अंततः उन्होंने सभी सूत्रों को हल कर लिया, इसके बाद कार की यह पुस्तक जो पहले बिल्कुल भी विख्यात ना थी अब विख्यात हो चुकी थी।
कॉलेज जीवन में गणित से प्रेम।
स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा दी, जिसमें उन्होंने सफलता भी प्राप्त की। जिससे उन्हें कॉलेज में पढ़ने के लिए सरकारी छात्रवृत्ति प्रदान की गई। यह छात्रवृत्ति सामान्यतः उन्हीं विद्यार्थियों को दी जाती थी जो गणित और अंग्रेजी में अच्छे होते थे। कॉलेज आने तक वे गणित में काफी ज्यादा लीन हो गए थे। उन्हें गणित के सिवाय किसी अन्य विषय का ठिकाना ही ना रहा। इसके चलते उनकी अंग्रेजी भी काफी ज्यादा कमजोर हो गई थी। अंततः कॉलेज की वार्षिक परीक्षा(प्रथम वर्ष) में फेल हो गए। परिणामस्वरूप विवश होकर उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। उनके कॉलेज छोड़ने के पीछे और भी कुछ कारण थे, एक तो उन्हें कॉलेज की पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी ना थी और दूसरा वे आर्थिक रूप से इतने सक्षम ना थे कि वे आगे की पढ़ाई नियमित रख सकें। कॉलेज छोड़ने का उन्हें बिल्कुल भी दुख न था। अब उनके पास और ज्यादा समय था जो वह गणित के साथ बिता सकते थे। अतः उन्होंने गणित का अध्ययन जारी रखा और देखते ही देखते उन्होंने गणित के नवीन सिद्धांतों से मोटी मोटी कॉपियां भर डालीं।
आर्थिक जीवन तथा आर्थिक कठिनाइयां।
कॉलेज छोड़ने के बाद उनको छात्रवृत्ति मिलनी बंद हो गई थी जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। इसी बीच उनका विवाह भी करा दिया गया था जिसकी वजह से उनकी कठिनाइयां और भी ज्यादा बढ़ गई थीं। अब उन्हें कहीं नौकरी करके पैसा कमाने की आवश्यकता महसूस होने लगी और इसके बाद वह काम की तलाश में यहां-वहां भटकने लगे। तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें कोई काम ना मिल सका जिससे वह काफी निराश हो गए। आखिरकार उनकी मुलाकात "इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी" के संस्थापक वी.पी. रामस्वामी अय्यर से हुई जो त्रिकोयला में डिप्टी कलेक्टर के पद पर आसीन थे। उनसे मिलने के बाद उन्होंने अपनी सारी परेशानियां उन्हें बताईं और उनसे एक छोटी सी नौकरी की मांग की। हालांकि आयंगकर उनकी प्रतिभा से भलीभांति परिचित थे, इसलिए उन्होंने उन्हें कोई छोटी नौकरी देना बिल्कुल भी सही ना समझा और उन्हें पी.वी. श्रेशुअय्यर के पास मद्रास भेज दिया। श्री शेषुअय्यर कुंभकोनम कॉलेज में गणित के पूर्व प्रोफेसर रह चुके थे। जिससे वह रामानुजन से पहले से ही परिचित थे। अतः उन्होंने रामानुजन को एक अस्थाई नौकरी दे दी। रामानुजन ने उसके बाद प्राइवेट ट्यूशन भी चला कर अपना गुजारा किया। इसके बाद कार्य की कमी के चलते प्रोफेसर शेेेेषुअय्यर ने रामानुजन को श्री आर. रामचंद्र राव के पास भेज दिया। वह रामानुजन के कार्यों से काफी ज्यादा प्रभावित थे। जब वे पहली बार रामानुजन से मिले थे तब ही वे, उनके गणित ज्ञान से मोहित हो गए थे। वे लिखते हैं," बहुत दिन हुए मेरे भतीजे ने मुझसे आकर कहा कि, एक अपरिचित सज्जन आए हुए हैं और गणित संबंधी बातें करती हैं। मेरी समझ में तो कुछ आता नहीं आप चल कर देखिए, उनकी बातों में कुछ तत्व भी हैं या यूं ही गप हाक रहे हैं। मैंने अपने भतीजे से उस अपरिचित व्यक्ति को अपने कमरे में लाने को कहा। एक नाटा, तंदुरुस्त, मेले से कपड़े पहने हुए, चमकीली आंखों वाला युवक मेरे सामने उपस्थित हो गया, यही युवक श्री रामानुजन थे। युवक की सूरत ही से गरीबी टपक रही थी, एक मोटी सी कांपी वह बगल में दबाए हुए थे और गणित के अध्ययन के लिए कुंभकोणम से मद्रास भाग आया था। धन और यश का भूखा ना था, चाहता था कि उसके गणित के अध्ययन में कोई बाधा ना पड़े, कोई उसके भोजन, वस्त्र का प्रबंध कर दे और वह निश्चिंत होकर अपना अध्ययन जारी रख सके। वह युवक अपनी कॉपी खोलकर मुझे अपनी नवीन खोजें समझाने लगा। मैं तत्काल ही समझ गया कि युवक कुछ असाधारण बातें बता रहा है, परंतु अज्ञानतावश मैं निश्चित ना कर सका कि वे सब बातें कितनी महत्वपूर्ण हैं। अस्तु मैंने उसके इस संबंध में कुछ भी ना कहा। हां उससे अपने पास आ जाने के लिए जरूर कह दिया। वह मेरे पास आने जाने लगा और धीरे-धीरे मेरी गणित संबंधी योग्यता को भी बखूबी समझ गया। उसने मुझे कुछ अपने सरल सिद्धांत बतलाए जोकि वर्तमान पुस्तकों से आगे बढ़े हुए थे। इन सिद्धांतों की व्याख्या इतनी उत्तमता पूर्वक की गई थी कि मैं देखकर दंग रह गया और मुझे यह बात मन ही मन स्वीकारनी पड़ी कि रामानुजन एक असाधारण योग्यता का बालक है। धीरे-धीरे उसने मुझे अपनी कुछ और महत्वपूर्ण खोजों का हाल बतलाया और अंत में विचल श्रेणियों के सिद्धांत का भी जिक्र किया। मैं क्या समस्त संसार इस सिद्धांत से उस समय तक अनभिज्ञ था।"
श्री राव रामानुजन से काफी ज्यादा प्रभावित थे। उन्होंने रामानुजन जैसी महान प्रतिभा को आश्वासन दिया कि जब तक किसी कार्य का प्रबंध ना हो जाए तब तक आप का खर्च मैं ही बहन करूंगा। यह कहकर उन्होंने रामानुजन को वापस मद्रास भेज दिया। परंतु रामानुजन को भी उनका आभार स्वीकार ना था और उन्होंने उनसे नौकरी की मांग की। आखिरकार विवशतावश श्रीराव ने उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट पर ₹30 मासिक वेतन की नौकरी दिला दी। इसके बाद श्री राव ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के चेयरमैन सर फ्रांसिस स्प्रिंग को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि वे रामानुजन के लिए कुछ ना कुछ प्रबंध करें ताकि वह महान प्रतिभा दुनिया के सामने आ सके वरना यह प्रतिभा दफ्तर में काम करते ही नष्ट हो जाएगी। इसके बाद सर फ्रांसिस तथा जी.टी. वाकर की मदद से उन्हें सहायता प्राप्त हुई।
रामानुजन के शोध पत्रों का प्रकाशन।
1911 में रामानुजन के कई लेख मद्रास की इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में प्रकाशित हुए। उनका सर्वप्रथम लेख प्रश्न के रूप में था। इसके बाद सन् 1912 में उन्होंने अन्य लेख भी प्रकाशित किए। उन्ही लेखों के साथ रामानुजन ने समस्त संसार में ख्याति प्राप्त कि। उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि बरनौली संख्याओं पर प्रस्तुत शोध पत्रों से मिली।
इन्हे भी पढ़ें-
श्रीनिवास रामानुजन के अनमोल विचार.रामानुजन को डॉ. हार्डी का साथ।
श्री शेषुअय्यर तथा अन्य मित्रों की सहायता से उन्होंने अपने कुछ लेख डॉक्टर हार्डी के पास भेजें, जो उन्हें प्रकाशित कराने तथा उनमें अपनी सम्मति देने के संदर्भ में थे। यह लेख रामानुजन ने 16 जनवरी 1913 को भेजा था। श्री रामानुजन ने डॉक्टर हार्डी को लेखों का जिक्र करते हुए लिखा,"मुझे विश्वविद्यालय की शिक्षा नहीं मिली है। साधारण स्कूल का पाठ्यक्रम समाप्त कर चुका हूं। स्कूल छोड़ने के बाद मैं अपना सारा समय गणित में लगाता रहा हूं। मैंने केंद्र विचल श्रेणियों का विशेष अध्ययन किया। अभी हाल में ही मुझे आपका एक लेख देखने को मिला है। उसके पृष्ठ 36 पर लिखा है कि अभी किसी दी हुई संख्या से कम रूढ़ संख्या के लिए कोई राशि माला नहीं मिल सकी है। मैंने एक ऐसी राशि माला खोजी है जो वास्तविक परिणाम के अत्यंत निकट है इसमें जो अशुद्धि आती है वह नाम मात्र और त्याज्य है। मैं आपसे इस पत्र के साथ के कागजों को पढ़ने का अनुरोध करूंगा। मैं निर्धन हूं। यदि आपकी दृष्टि में इनका कुछ मूल्य हो तो मैं चाहूंगा इन्हें प्रकाशित करा दिया जावे। मैंने वास्तविक अन्वेषण नहीं दिए हैं, केवल उस मार्ग की ओर संकेत किया है जिस पर मैं जा रहा हूं। अनुभव ना होने के कारण आपकी प्रत्येक सम्मति मेरे बड़े काम की होगी।"
इसके बाद प्रोफेसर हार्डी तथा अन्य अंग्रेज गणितज्ञ रामानुजन की प्रतिभा से काफी ज्यादा प्रभावित हुए। उन्होंने देखा कि रामानुजन की सवालों को हल करने की विधि तथा योग्यता काफी विलक्षण है। उन्होंने महसूस किया कि रामानुजन ने जिस विधि से परिणामों को प्राप्त किया था वह काफी ज्यादा मौलिक थी तथा सामान्य समझ के बाहर थी। उनके द्वारा दिए गए सभी सूत्र अत्यंत उच्च कोटि के थे। प्रो. हार्डी, श्री रामानुजन की इन्हीं खूबियों से उनके कायल हो गए तथा उन्हें ब्रिटेन बुलाने के प्रयास करने लगे।
इसके बाद प्रो. हार्डी ने रामानुजन की काफी मदद की, पर दुर्भाग्यवश वे रामानुजन को ब्रिटेन बुलाने में सफल न हो सके। रामानुजन का परिवार समुद्र यात्रा के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं था, पर डॉक्टर हार्डी के सहयोग से अब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई थी। इसके आगे पश्चिमी गणितज्ञों के साथ उनके काफी अच्छे संबंध हो चुके थे। वह लगातार उन्हें गणित के संबंध में पत्र लिखते रहे। इसके साथ ही प्रोफेसर हार्डी रामानुजन को इंग्लैंड बुलाने की नाकाम कोशिश करते रहे। वास्तव में प्रोफेसर हार्डी जैसे महान व्यक्तित्व के ही महान कोशिशों का फल है कि आज रामानुजन जैसे महान हीरा हमारे सामने आ सका नहीं तो कभी यह हीरा निखर ही ना पाता। भारत जैसा देश उसकी कुछ भी सहायता ना करता और वह यही नौकरी करते हुए अपना संपूर्ण जीवन बिता देता।
इंग्लैंड यात्रा।
बात है सन 1914 की जब कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो और गणित के अध्यापक ई.एच. नेविल भारत आए हुए थें। प्रोफेसर हार्डी ने उन्हें रामानुजन को अपने साथ लाने का विशेष आग्रह कर रखा था। भारत आने पर उन्हें मद्रास कॉलेज में भाषण देने के लिए बुलाया गया था। वहां उन्होंने रामानुजन से भी मुलाकात की। उन्होंने रामानुजन से आग्रह किया कि वे भी उनके साथ इंग्लैंड चलें। अब रामानुजन को भी इंग्लैंड जाने की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। उन्होंने सहमति जताई तथा कहा कि यदि मेरी माता जी अनुमति दें तो मैं अवश्य ही चलूंगा। आखिरकार उनकी माताजी ने उन्हें अनुमति दे दी। तत्पश्चात वे नेविल के साथ इंग्लैंड रवाना हो गए। वहां उन्होंने प्रोफेसर हार्डी तथा अन्य बड़े गणितज्ञों के साथ मिलकर गणित में काफी ज्यादा कार्य किए।
नेविल की सहायता से ही उनकी परिवार की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा उनके परिवार का खर्च वाहन करने का आश्वासन दिया गया। सन् 1917 तक वह इंग्लैंड में कार्य करते रहे इसी बीच उनके लेख संपूर्ण यूरोप की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे और उन्हें तमाम यूरोप में भी काफी ज्यादा ख्याति प्राप्त हुई। इंग्लैंड में भी इसी तरह की वेशभूषा में रहते थे। वे साधारण भोजन (जैसे भारत में लिया जाता है।) ही करते थे, तथा इसी प्रकार के कपड़े भी वहां पहनते थे। वे काफी ज्यादा शारीरिक और मानसिक कार्य भी किया करते थे। इसके कारण उनका स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ तथा वे टीवी का शिकार हो गए। इसके बाद काफी ज्यादा उपचार के चलते उनकी तबीयत अब धीरे-धीरे सुधरने लगी।
फेलो के रूप में कार्यभार।
सन 1918 को उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो नियुक्त किया गया। वह पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने यह महान कार्यभार संभाला। यह वास्तव में उनके लिए महान समय था। फेलो चुने जाने के बाद डॉक्टर हार्डी ने लिखा था, "सफलता से उनकी सहज सरलता में कोई अंतर नहीं आया, वास्तव में आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें अनुभव कराया जाए कि वह सफल हुए हैं". फेलो नियुक्त किए जाने के बाद उन्हें 250 पाउंड सालाना देना तय किया गया इसके बाद आपको यह धनराशि नियमित 6 वर्षों तक प्राप्त होती रही।
भारत आगमन और मृत्यु।
फरवरी 1919 में वे लंदन से स्वदेश के लिए रवाना हुए तथा 27 मार्च को वह मुंबई पहुंचे। उनके स्वदेश आगमन के समय डॉक्टर हार्डी ने मद्रास विश्वविद्यालय के अधिकारियों को लिखा था,"रामानुजन इतने बड़े गणितज्ञ होकर भारत लौटेंगे जितना आज तक कोई भारतीय नहीं हुआ है। मुझे आशा है कि भारत उन्हें अपनी अमूल्य संपत्ति समझकर उचित सम्मान करेगा।". भारत से विलग ब्रिटेन में रहने पर वे दूसरे जलवायु के आदी हो चुके थे वहां भी उनका स्वास्थ्य ज्यादा सही नहीं रहता था और साथ ही साथ भारत आने पर अलग जलवायु से उनकी तबीयत और भी खराब हो गई थी। वे काफी दुबले पतले हो चुके थे। उनकी तबीयत धीरे-धीरे ज्यादा गंभीर होने लगी थी। उनके इलाज का भी खास प्रबंध कराया गया था। पर शायद म्रत्यु को यह स्वीकार न था। अब वे अपने गांव कुंभकोनम चले गए वहां उनकी तबीयत और भी खराब होने लगी। जिसके बाद वे फिर मद्रास आ गए। उनकी तबीयत काफी ज्यादा बिगड़ चुकी थी। फलस्वरुप 16 अप्रैल 1920 को मद्रास के निकट चेतपुर नामक ग्राम में उनका स्वर्गवास हो गया।
रामानुजन का व्यक्तिगत जीवन।
कहा जाता है कि रामानुजन काफी शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका स्वभाव काफी सरल तथा शील था। स्कूल के दिनों में भी वे कक्षा में शांत रहा करते थे। अपने माता-पिता के प्रति उनका अथाह प्रेम था। उनको अभिमान तो बिल्कुल भी न था। वे समाज से भी काफी ज्यादा जुड़े हुए थे और प्रत्येक रीति-रिवाजों का बखूबी पालन करते थे। भगवान में भी उनका अडिग विश्वास था। वे अपनी ईश्वरी देवी नामगिरि की काफी आराधना करते थे। वह अपने सारे गणित ज्ञान का श्रेय उन्हीं को देते थे। उनका कहना था कि वे ही उन्हें गणित का ज्ञान देती हैं। उन्होंने धन संचय की ओर कभी भी ध्यान ही नहीं दिया। यह बात काफी प्रशंसनीय है कि उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने यह कहा था कि उनके छात्रवृत्ति में से उनके परिवार को 50 पौंड देकर उसके बाद उनकी निजी खर्चे से जो शेष धनराशि बचे उसे वह गरीब विद्यार्थियों को देकर उनकी सहायता में व्यय करें।
महत्वपूर्ण शोध।
श्रीनिवास रामानुजन के शोध काफी विलक्षण थे। उन्होंने कई सूत्रों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जो अत्यंत जटिल थे। रामानुजन की सबसे महत्वपूर्ण लेख, संख्याओं और अंकों की सीमाओं तथा गूढ़यौगिक संख्याओं पर थे। रामानुजन के सभी शोध तथा निबंधों का संग्रह ग्रंथ जो 355 पेजों का था सन् 1927 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रकाशित हुआ था। जिसका संपादन प्रो. हार्डी, डॉक्टर वी.एन. विल्सन तथा श्री शेषुअय्यर ने किया था। यदि आप इस ग्रंथ का अध्ययन करना चाहें तो आवश्यकता है कि आपको उच्च गणित का काफी ज्यादा ज्ञान हो। आपने सीमित अनुकूल, अनंत श्रेणियां, विभजन सिद्धांत वृत्तीय फलन, विवत भिन्न से संबंधित सर्वोत्कृष्ट कार्य किए। रामानुजन के कुछ शोध तथा सूत्र मृत्यु के उपरांत इधर-उधर हो गए थे जो प्रकाशित ना हो सके। इनके प्रकाशन का कार्य प्रोफेसर डॉ विल्सन तथा जी.एन. वाटसन को सौंपा गया। जिन्होंने इसमें काफी अच्छा कार्य किया। दोनों ने मिलकर हस्तलिखित 900 पेज से अधिक एक ग्रंथ लिखा जो रामानुजन के शोधों का क्रमबद्ध रूप था इसमें 4000 ऐसे नियम हैं, जो बिना किसी प्रमाण के लेखबद्ध किए गए हैं। कई यूरोपीय गणितज्ञों का यह मानना है कि रामानुजन के कार्यों को समय के साथ और भी ज्यादा ख्याति मिलेगी। साथ ही उन्हें और भी ज्यादा सम्मान और महत्व मिलेगा।
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धन्यवाद!
Kaafi preranadayak jivani.
ReplyDeleteAAP research karke likhte ho
ReplyDeletearticle is awesome
DeleteJi ha.
ReplyDeleteरामानुज हमारे लिए गौरव है बहुत अच्छी जीवनी लिखी है आपने
ReplyDeleteवे वास्तव में अद्भुत थें।
ReplyDelete93061 77605 भाई यह मेरा व्हाट्सएप नंबर है प्लीज मुझे कांटेक्ट करो,
ReplyDeleteमैं भी ब्लॉग लिखता हूं शायद इससे आपकी भी थोड़ी मदद हो जाए और कुछ मेरी भी मदद हो जाएगी
जी हां मैं आपसे बिल्कुल संपर्क करूंगा।
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ReplyDeleteIndia is known worldwide for its culture and civilization. Various types of festivals are celebrated every year in India. India is also called a festival country.