Skip to main content

क्या कोलेस्ट्रॉल वास्तव में जानलेवा है।


जैसे ही हम कोलेस्ट्रोल का नाम सुनते हैं वैसे ही हमारे दिमाग में एक ऐसे व्यक्ति का चित्र आता है जो उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियों से ग्रसित है। अब बात आती है क्या वास्तव में कोलेस्ट्रोल हमारे शरीर के लिए इतना हानिकारक है? इसका उत्तर है, नहीं जितना हम सोचते हैं कोलेस्ट्रोल उतना हानिकारक नहीं है। भूलवश हम ज्ञान के अभाव में कोलेस्ट्रॉल के बारे में उल्टी सीधी बातें करने लगते हैं। चलिए अब हम जानेंगे कॉलेस्ट्रोल के बारे में कि क्या यह वास्तव में हमारे लिए हानिकारक है।

क्या कोलेस्ट्रॉल वास्तव में जानलेवा है।

क्या है कोलेस्ट्रॉल

कोलेस्ट्रोल एक प्रकार का कार्बनिक यौगिक है। जिसका रासायनिक सूत्र C27H46O है। यह "एस्टारायड कुल" का यौगिक है। कोलेस्ट्रॉल को "स्टेराल" के नाम से भी जाना जाता है। कोलेस्ट्रॉल का संश्लेषण हमारे शरीर में यकृत तथा अन्य अंगों द्वारा होता है। और कोलेस्ट्रॉल विटामिन बी, स्टेरॉयड हार्मोन तथा यकृत अम्लों का संश्लेषण भी करता है। अब बात आती है कि हमारे शरीर में इसका संचरण कैसे होता है, इसका उत्तर है कि यह लिपॉप्रोटीन के माध्यम से रक्त के साथ प्रवाहित होता है।
क्या कोलेस्ट्रॉल वास्तव में जानलेवा है।

लिपॉप्रोटीन क्या है।

लिपॉप्रोटीन मुख्यतः लिपिड तथा प्रोटीन से मिलकर बने कार्बनिक यौगिक है। लिपॉप्रोटीन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जो हैं। HDL(हाई डेंसिटी लिपॉप्रोटीन), LDL(लो डेंसिटी लिपॉप्रोटीन), और VLDL(वेरी लो डेंसिटी लिपॉप्रोटीन)। कोलेस्ट्रॉल तीनों लिपॉप्रोटीन ओं में विभिन्न मात्राओं में पाए जाते हैं।
क्या कोलेस्ट्रॉल वास्तव में जानलेवा है।
lipoprotine

कोलेस्ट्रोल का वर्गीकरण।

HDL(हाई डेंसिटी लिपॉप्रोटीन) अर्थात गुड कोलेस्ट्रॉल
LDL(लो डेंसिटी लिपॉप्रोटीन)  अर्थात बैड कोलेस्ट्रॉल
VLDL(वेरी लो डेंसिटी लिपॉप्रोटीन) अर्थात वेरी बैड कोलेस्ट्रॉल

HDL(हाई डेंसिटी लिपॉप्रोटीन) अर्थात गुड कोलेस्ट्रॉल क्या है।


यह कॉलेस्ट्रोल शरीर के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। क्योंकि यह धमनियों में नहीं जमता जिससे रक्त का प्रवाह बाधित नहीं होता और हार्ट अटैक की समस्या नहीं होती। अतः धमनियों में जमे अन्य कोलेस्ट्रोल को भी अपने साथ ले जाता है जहां उसका ऊर्जा के रूप में उपयोग कर लिया जाता है। इस प्रकार यह कॉलेस्ट्रोल हमारे शरीर के लिए बेहद आवश्यक है। इसकी मात्रा जितनी ज्यादा होती है हमारे शरीर और हार्ट के लिए उतना ही अच्छा है। रक्त में इसका स्तर 60 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर या इससे अधिक होना चाहिए। यदि इसका स्तर 40 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम है तो हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

LDL(लो डेंसिटी लिपॉप्रोटीन)  अर्थात बैड कोलेस्ट्रॉल क्या है

यह कॉलेस्ट्रोल हमारे शरीर के लिए हानिकारक है क्योंकि यह हमारी धमनियों में जमा हो जाता है। जिससे रक्त का प्रवाह बाधित होने लगता है। फलस्वरूप हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। इसकी मात्रा 160 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा होना हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक है। LDL के शरीर में बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है अनियमित दिनचर्या।

VLDL(वेरी लो डेंसिटी लिपॉप्रोटीन) अर्थात वेरी बैड कोलेस्ट्रॉल


यह कॉलेस्ट्रोल हमारे शरीर के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है । इसका जमाव हमारी धमनियों तथा शिराओं में अत्यधिक मात्रा में होता है। जिससे हमारे धमनियां तथा शिराओं में रक्त के प्रवाह में अत्याधिक बाधा उत्पन्न होती है। फलस्वरूप हार्ट अटैक तथा हार्ट स्टॉक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

LDL तथा VLDL कोलेस्ट्रॉल भारतीयों के लिए क्यों ज्यादा हानिकारक है।

यूरोपीय देशों तथा जापानियों की धमनियों के मुकाबले भारतीयों की धमनियां ज्यादा सक्रिय होती हैं। जिसके कारण धमनियों में कोलेस्ट्रोल के थोड़े ही जमाव से रक्त प्रवाह में  बाधा उत्पन्न होने लगती है अतः भारतीयों के लिए कोलेस्ट्रोल का जमाव अत्यधिक हानिकारक है।

निष्कर्ष


यह बात जान लेना काफी महत्वपूर्ण है कि हमारे शरीर में 80%  कोलेस्ट्रॉल हमारा शरीर खुद ब खुद बनाता है शेष 20% कॉलेस्ट्रोल हमारे शरीर में खाद्य पदार्थों से निर्मित होता है। अब 20% कॉलेस्ट्रोल जो कि भोज्य पदार्थों के द्वारा निर्मित होता है, के लिए आवश्यक है कि इस कोलेस्ट्रॉल में हमें ज्यादा से ज्यादा एच डी एल कोलेस्ट्रोल बनाने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि यह हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। अतः हमें  दूध, अंडा,पनीर,मछली आदि का सेवन संतुलित मात्रा में लगभग 300 मिलीग्राम प्रति दिन करना चाहिए जिससे कि HDL कोलेस्ट्रोल का निर्माण होता रहे। इन्हें पूरी तरह से त्यागना हमारे लिए हानिकारक हो सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि सभी कोलेस्ट्रोल हानिकारक नहीं होते केवल LDL तथा VLDL कोलेस्ट्रोल ही हानिकारक होते हैं

एलडीएल तथा एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिए क्या करें।

क्या कोलेस्ट्रॉल वास्तव में जानलेवा है।

1-संतुलित एवं पौष्टिक आहार लें।
2-फास्ट फूड से परहेज करें।
3-खाने में अनाजों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करें।
4-धूम्रपान तथा शराब आदित्य पदार्थों से दूर रहें।
5-नियमित व्यायाम करें।
6-शरीर का वजन नियंत्रित करें।
7-घी, दूध, मछली, पनीर आदि का सेवन ज्यादा ना करें। 

Comments

Popular posts from this blog

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।

अल्बर्ट आइंस्टीन के सुप्रसिद्ध अनमोल विचार।  अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में हुआ था। उनके पिता का नाम हरमन आइंस्टीन  तथा माता का नाम पोलिन कोच था। अल्बर्ट आइंस्टीन एक महान वैज्ञानिक थे। उन्हें वर्ष 1921 का नोबल पुरस्कार भी दिया गया था। उनका सापेक्षता का सिद्धांत आज पूरी दुनिआ में प्रसिद्ध है। दुनिया उन्हें जीनियस के नाम से भी जानती हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने भौतिकी के नियमों से सारी दुनिया में ख्याति प्राप्त की थी। Albert Einstein anmol vichar अल्बर्ट आइंस्टीन के प्रसिद्ध अनमोल विचार यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिल्कुल नई सोच की आवश्यकता होगी। सफल व्यक्ति बनने का प्रयास मत करें बल्कि सिद्धांतों वाला व्यक्ति बनने का प्रयत्न करें। हर कोई जीनियस है, लेकिन यदि आप मछली को उसके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से आंकेंगे तो वह अपना सारा जीवन यह समझकर बिता देगी कि वह मूर्ख है। जिंदगी साइकिल चलाने की तरह है, आपको बैलेंस बनाए रखने के लिए चलते ही रहना होगा। कोई भी समस्या चेतना के उस स्तर पर रहकर नहीं हल की जा सकती है, जिस पर वह

क्या है इन चिकित्सा पद्धितियों का रहस्य।

हमारे देश में आज भी रोग हो जाने पर झाड़-फूंक का सहारा लिया जाता है। और ज्यादातर लोग इससे ठीक भी हो जाते है। यह वाकई रहस्यमई है। पाठकों आज हम इस तरह की एक रहस्यमई चिकित्सा पद्धति का विश्लेषण करेंगे । पहली है हाथों के स्पर्श से बीमारियों को ठीक करना तथा दूसरी बायोफीडबैक सिस्टम। आज इन दोनों पद्धतियों से करोड़ों लोगों के रोग दूर किए जा चुके हैं। यह दोनों पद्धतियां झाड़-फूंक से भी कहीं ज्यादा रहस्यमई हैं। यदि इन्हें चिकित्सा पद्धतियों का भेद जाने दिया गया तब आयुर्विज्ञान अपने सातवें आसमान में होगा और चिकित्सा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व क्रांति देखने में आएगी। 1971 में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में नर्सिंग की महिला प्रोफेस र  डॉ डोलोरस क्रीगर ने पूर्वी देशों की यात्रा की और विभिन्न प्रकार के धर्मों का अध्ययन किया। और पाया कि हिंदू धर्म में जिसे "प्राण" कहां गया है वह मानव रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कणिकाओं से काफी ज्यादा समानता रखता है। हिंदू धर्म में बताया गया है कि प्राण मानव के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि ऑक्सीजन का एक अणु। उसी समय जुस्ता स्मिथ जो कि अम

आकाश नीला क्यों दिखाई देता है। Aakash nila kyon dikhai deta hi.

हमे आकाश नीला क्यों दिखता है? क्या आपने भी कभी सोचा है कि आखिर ये आकाश हमें  नीला(blue) क्यों दिखता है। यदि हां तो मैं आपको बताऊंगा की आखिर ऐसा क्यों होता है। Sky blue आकाश नीला दिखने का कारण- दोस्तों जैसा की आपको पता ही होगा कि प्रकाश 7 (seven) रंगों से मिलकर बना होता है जो हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। उसी प्रकार सूर्य से निकलने वाला प्रकाश भी 7 रंगों से मिलकर बना होता है। Sky blue अब बात आती है प्रकाश के व्यवहार की तो प्रकाश कई तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है जैसे- परावर्तन(reflection), अपवर्तन(refraction), विवर्तन (diffraction) तथा प्रकीर्णन( dispertion) आदि। चलिए अब जानते हैं कि आखिर प्रकीर्णन है क्या? दोस्तो प्रकीर्णन प्रकाश का एक महत्वूर्ण गुण है, आइए प्रकीर्णन को परिभाषित करते हैं। "प्रकाश का अत्यंत सूक्ष्म कणों से टकराकर बिखर जाना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है"। दोस्तों अब हमने प्रकाश के प्रकीर्णन को समझ ही लिया है तो अब हम बात कर लेते हैं, सूर्य प्रकाश में प्रकीर्णन की। सूर्य के प्रकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है।