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जानिये मिस्त्र के पिरामिडों का रहस्य।

मिस्र के पिरामिड हमेशा से मानव के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। यह सदियों से रहस्यमई बने हुए हैं। मिस्र के पिरामिड दुनिया की सात रहस्य में से एक माने जाते हैं। अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि इनका निर्माण कैसे और क्यों किया गया। इन पिरामिडों का निर्माण आज से 3500 साल पहले मिस्त्र के राजाओं ने कराया था। मिस्र के पिरामिड इस बात की ओर इशारा करते हैं की प्राचीन मिस्र वासियों को सांख्यिकी का अत्यंत ज्ञान था। यह पिरामिड प्राचीन मिस्र वासियों के ज्ञान का सबसे बड़ा उदाहरण है। वैसे तो दुनिया में हजारों की पिरामिड पाए गए। लेकिन इन पिरामिडों में मिस्र के पिरामिड सबसे अलग हैं। बात करें मिस्र के गीजा शहर में उपस्थित " ग्रेट पिरामिड " की तो यह दुनिया के सात रहस्य में से एक है। क्या है पिरामिडों का रहस्य। मिस्र में उपस्थित 138 पिरामिडों में से सबसे रहस्यमई पिरामिड है " ग्रेट पिरामिड "। इस पिरामिड का निर्माण मिस्त्र के तात्कालिक राजा कूफो ने कराया था। कहा जाता है कि इस पिरामिड के निर्माण में 23 लाख पत्थरों का उपयोग किया गया था, जिनका कुल वजन 65000 टन था। इस पि

क्या है इन चिकित्सा पद्धितियों का रहस्य।

हमारे देश में आज भी रोग हो जाने पर झाड़-फूंक का सहारा लिया जाता है। और ज्यादातर लोग इससे ठीक भी हो जाते है। यह वाकई रहस्यमई है। पाठकों आज हम इस तरह की एक रहस्यमई चिकित्सा पद्धति का विश्लेषण करेंगे । पहली है हाथों के स्पर्श से बीमारियों को ठीक करना तथा दूसरी बायोफीडबैक सिस्टम। आज इन दोनों पद्धतियों से करोड़ों लोगों के रोग दूर किए जा चुके हैं। यह दोनों पद्धतियां झाड़-फूंक से भी कहीं ज्यादा रहस्यमई हैं। यदि इन्हें चिकित्सा पद्धतियों का भेद जाने दिया गया तब आयुर्विज्ञान अपने सातवें आसमान में होगा और चिकित्सा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व क्रांति देखने में आएगी। 1971 में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में नर्सिंग की महिला प्रोफेस र  डॉ डोलोरस क्रीगर ने पूर्वी देशों की यात्रा की और विभिन्न प्रकार के धर्मों का अध्ययन किया। और पाया कि हिंदू धर्म में जिसे "प्राण" कहां गया है वह मानव रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कणिकाओं से काफी ज्यादा समानता रखता है। हिंदू धर्म में बताया गया है कि प्राण मानव के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि ऑक्सीजन का एक अणु। उसी समय जुस्ता स्मिथ जो कि अम

जानिये ईस्टर आइसलैंड का रहस्य।

वैसे तो संसार में कई आइसलैंड हैं लेकिन ईस्टर आइसलैंड इन सभी आइसलैंडों में सबसे अलग तथा सबसे रहस्यमई है। यह दक्षिण पूर्व प्रशांत महासागर में स्थित है। जो वर्तमान में चिली का हिस्सा है।  ईस्टर आइसलैंड रहस्य की  एक ऐसी अनसुलझी पहेली है जिसे आज तक सुलझाया नहीं जा सका। दोस्तों आज हम जानेंगे ईस्टर आइसलैंड के बारे में जिसका रहस्य उसकी खोज के साथ ही प्रारंभ हो गया था। क्या है ईस्टर आईसलैंड का रहस्य ईस्टर आइसलैंड में हजारों ऐसी बड़ी-बड़ी 15 से 20 फुट ऊंची तथा 70-80 टन वजनी मूर्तियां पाई गई जिन्हें देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। कुछ मूर्तियों तो ऊंचाई में 30 से 32 फुट तथा 80 से 90 टन वजनी थी। वैज्ञानिकों पुरातत्वविदों के अनुसार यह मूर्तियां आज से 1200 साल पहले बनाई गई थीं। अब सवाल आता है कि आखिर इन मूर्तियों को बनाया किसने था, जबकि वहां पर किसी सभ्यता के होने के प्रमाण ही नहीं मिलते और यदि इन्हें इस देश के निवासियों ने बनाया था तो सवाल यह उठता है कि, आज से हजारों साल पहले मानव सभ्यता इतनी विकसित ही नहीं हुई थी कि इतने बड़े तथा वजनी पत्थरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा सके

क्या है "अटलांटिस द्वीप" का रहस्य।

क्या वाकई में आज से 3500 साल पहले अटलांटिक महासागर में जिब्राल्टेर जलडमरू -मध्य के आस पास एक ऐसा द्वीप था जो यूरोप और एशिया महाद्वीप के योग से भी ज्यादा बड़ा था। आज हम जानेंगे सबसे रहस्यमई "अटलांटिस द्वीप" के बारे में जिसका रहस्य आज तक किसी ने नहीं सुलझा पाया है। क्या है "अटलांटिस द्वीप" का रहस्य प्लेटो के अनुसार आज से 3500 साल पहले अटलांटिक महासागर में एक द्वीप हुआ करता था जिसे लोग अटलांटिस के नाम से जानते थे। अटलांटिस द्वीप के लोग काफी उन्नत थे। काफी अच्छी मंदिरें, बंदरगाह, अच्छी-अच्छी धातुएं, सोने के रथ पर सवार देवता आदि चीजें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि अटलांटिस वाकई एक अद्भुत द्वीप था। लेकिन अटलांटिसवासियों की इन खुशियों के बीच आया एक ऐसा दिन जिसने सारी अटलांटिस द्वीप की कहानी ही खत्म कर दी। आखिर क्या हुआ था "अटलांटिस द्वीप" के साथ। एक शाम अटलांटिस के चारों ओर का समुद्र लाल होने लगा जोर- जोर की आवाजें आने लगी धरती हिलने लगी। सभी अटलांटिस-वासी काफी डर गए, और कुछ ही समय बाद आकाश से जलते हुए पत्थरों की वर्षा होने लगी, चारों तरफ